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श्री भीडभञ्जन महादेवो विजयतेतराम् श्रीमत्स्वामी विश्वात्मान्द गिरि

स्वामीजी का जीवन

स्वामीजी का जीवन प्रारम्भ से ही शिस्तबद्ध रहा तथा गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी उनका मन नित्य प्रति भगवत् चिन्तन में लगा रहता था। गृहस्थ आश्रम में उनका मन न लगने तथा अध्यात्म का उनके जीवन में प्रभाव बढ़ने के कारण ई.स. 1972 में गृहस्थ आश्रम का त्याग कर उनके गृहस्थ आश्रम के गुरु परम पूज्य प्रातः स्मरणीय अनन्त विभूषित श्रीमत्स्वामी चतुर्भुजानन्द गिरि जी महाराज, जो स्वयं में हठयोग के महान् ज्ञाता तथा प्राणायाम के दृढ़ अभ्यासकर्ता थे, के पास जाकर स्वामीजी नें अपना विचार उन महापुरुष के समक्ष रखा तो उन्होंने इन्हें अपने शिष्य रूप में स्वीकार किया तथा संन्यास दीक्षा प्रदान करके हठयोग की दीक्षा तथा प्राणायाम का ज्ञान स्वामीजी को दिया। कुछ काल गुरु समीप यापन करने के बाद गुरु आज्ञा से स्वामीजी साधना के अनुकूल विभिन्न पवित्र तीर्थ स्थानों में भिन्न भिन्न अनुष्ठानों में रत हुये। गत 25 वर्षों से स्वामीजी महाराज हरिद्वार में निवास कर रहे हैं तथा जीव मात्र की सेवा करते हुये साधनारत है।