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Shri Bhirbhanjan Mahadevo Vijayatetarām |
Shrimat-Swami Vishvatmananda Giri |
सुखी जीवन के सरल उपाय प्रातःकाल उठने के बाद स्नान से पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य हैं, शास्त्रों ने उनके लिये भी सुनियोजित विधि-विधान बताया है। गृहस्थ को अपने नित्य-कर्मों के अन्तर्गत स्नान से पूर्व के कृत्य भी शास्त्र-निर्दिष्ट-पद्धति से ही करने चाहिये। अतएव यहाँ पर क्रमशः जागरण-कृत्य एवं स्नान-पूर्व कृत्यों का निरुपण किया जा रहा है। ब्रह्म-मुहूर्त में जागरण – सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। “ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”। (ब्रह्ममुहूर्त की पुण्य का नाश करने वाली होती है।) करावलोकन – आँखों के खुलते ही दोनों हाथों की हथेलियों को देखते हुये निम्नलिखित श्लोक का पाठ करें – कराग्रे वसति लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। हाथ के अग्रभाग (आगे) में लक्ष्मी, हाट के मध्यभाग में सरस्वती और हाथ के मूलभाग में ब्रह्माजी निवास करते हैं, अतः प्रातःकाल दोनो हाथों का अवलोकन करना चाहिये। स्नान – उसके बाद उठकर अपने नित्य नियम अनुसार शौच, दन्तधावन (ब्रश), स्नानादि पूरा करके घर में मन्दिर के सामने बैठ जाये (साथ में जल का लोटा रखे)। तदनन्तर यह मन्त्र बोले – ॐ अपवित्रं पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। शुद्धिकरण – उसके बाद जल के लोटे में से दायें हाथ से चम्मच द्वारा तीन बार उपरसे जल का आचमन करें, प्रत्येक बार जल के आचमन से पूर्व यह मन्त्र पढ़े – अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुये बायें हाथ से चम्मच में जल लेकर दायें हाथ को धो लेवें। श्रीमद्-भगवद्-गीता पाठ – उसके बाद श्री गीता जी का पाठ अवश्य करना चाहिये – अधिक समय न हो तो कम से कम एक अध्याय, कुछ श्लोक अथवा एक श्लोक का अर्थपूर्वक पाठ करना चाहिये। मन्त्र जप – गीता पाठ के पश्चात् अपने गुरु-मन्त्र का अथवा अपने इष्ट देवता के मन्त्र का तीन माला कम से कम जप करना चाहिये। (गुरु के दिये हुये मन्त्र का ही जप करने से मन्त्र की सिद्धि होती है एवं फल की प्राप्ति होती है।) जप से पूर्व यह माला-मन्त्र द्वारा माला की पूजा करनी चाहिये। माला मन्त्र अविघ्नं कुरु माले गृह्णामि दक्षिणे करे। माला पूरी होने के बाद नीये दिये मन्त्र से चम्मच से एक बार पृथ्वी पर जल छोडकर किया हुआ मन्त्र जप देवता/देवी को समर्पित कर देना है। गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणऽस्मत्कृतं जपम्। (यदि देवी का मन्त्र हो तो गुह्यातिगुह्यगोप्तृ और परमेश्वरी का प्रयोग करें। ) आप अपना जो भी पाठ-जप इत्यादि करतें है वह पूरा कर लीजिये और आसन से उठने पहले, मन्त्र के साथ 21 प्राणायाम करने है। प्राणायाम – नीचे लिखें मन्त्र का मानसिक जप करते हुये वाम (बाँयी) नासिका से शनैः शनैः श्वास भीतर लेना हैं (पूरक), श्वास भीतर लेने के बाद उसे रोककर (कुम्भक) मानसिक रूप से एक मन्त्र का जप करना है तथा पुनः मन्त्र जप करते हुये धीरे धीरे श्वास को बाहर छोडना है (रेचक)। इसी प्रक्रिया को प्राणायाम में रेचक, पूरक और कुम्भक के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार यह एक प्राणायाम हुआ, ऐसे कम से कम 21 प्राणायाम करने चाहिये। (प्राणायाम मन्त्र अधोनिर्दिष्ट है) – ॐ भूं ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। यह तो सुबह का नित्य-नियम हुआ जिसमें अधिकाधिक 30 से 40 मिनट लग सकते है। इसके करने से जीवन में आध्यात्मिक, आधिभौतक एवं आधिदैविक तापों की शान्ति होती है एवं आनन्द की प्राप्ति होती है। भोजन के समय – जब भी आप भोजन करने बैठते है तब भोजन प्रारम्भ करने से पहले दायें हाथ में ग्लास में से थोड़ा सा जल लेकर यह मन्त्र बोलें – ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ
ब्रह्मणाऽहुतम्। इस ब्रह्मकर्म रूपी यज्ञ में अग्नि भी ब्रह्म ही है, हवि भी ब्रह्म ही है एवं अर्पणकर्ता भी ब्रह्म ही है। इस प्रकार जो सर्वत्र ब्रह्म भावना करता है उसे ब्रह्म भाव की प्राप्ति होती है। भोजन के समय इस मन्त्र का पाठ करने से अन्न के दोष दूर होते हैं। इस मन्त्र को मानसिक अथवा वाचिक रूप से बोलने के बाद थाली में से पाँच छोटे छोटे ग्रास (कौर, निवाले) खाने चाहिये और प्रत्येक ग्रास के साथ ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ समानाय स्वाहा व ॐ उदानाय स्वाहा क्रमशः बोलना चाहिये। हमारे शरीर में पाँच मुख्य प्राण होते है इसलिये यह पञ्च ग्रास आहुति देवताओं को समर्पित करनी चाहिये। यह नियम दोनों समय के भोजन के लिये है। रात को सोने से पहले अपने इष्टदेव अथवा गुरु चरण-कमल का चिन्तन करना चाहिये। ॥इत्यों शम्॥ |
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